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Tipaghad (आदिवासी देव स्थल) — वन-देवों की छांव में एक दिन

Tipaghad (आदिवासी देव स्थल) — वन-देवों की छांव में एक दिन

जब से हम नागझोला के खेतों में काम करने लगे हैं, आसपास के पहाड़ों और जंगलों के बारे में सुनना रोज़मर्रा का हिस्सा है। इन्हीं बातों-बातों में “टिपाघड़” का नाम बार‑बार आता था — आदिवासी देव स्थल, जहां जंगली बांस, सागौन और साल के पेड़ों के बीच देवगुड़ियां शांत खड़ी हैं। एक दिन हमने तय किया कि इस आस्था और जंगल के संग-साथ को अपनी आँखों से देखेंगे।

कैसे पहुँचें

  • Nagjhola Farm से सड़क मार्ग से पहुँचना सबसे आसान है। निजी वाहन/टैक्सी से यह एक दिन में हो सकता है। रास्ता गाँवों, साल-बांस के जंगलों और छोटी पहाड़ियों से होकर जाता है, बीच-बीच में कच्चे खंड भी मिलते हैं।
  • निकटतम बड़े कनेक्शन: Gondia/ Balaghat/ Mandla की ओर से आने पर राज्य/ज़िला सड़कों से जोड़ मिल जाता है। स्थानीय लोगों से रास्ता पूछना मददगार रहता है क्योंकि अंतिम 10–12 किमी कच्चे/वन पथ मिलते हैं।

नोट: ग्रामीण और वन क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क कमजोर हो सकता है; ऑफ़लाइन नक्शा और पर्याप्त पानी साथ रखें।

Nagjhola से दूरी और समय

  • Nagjhola Farm से Tipaghad तक लगभग 120–160 किमी (मार्ग के अनुसार) लग सकते हैं; 3–4 घंटे का ड्राइव रखें। अंतिम खंड में 2–3 किमी पैदल/जीप ट्रैक भी पड़ सकता है — यही हिस्सा सबसे खूबसूरत लगा क्योंकि जंगल की आवाज़ें साफ सुनाई देती हैं।

परिवहन के विकल्प

  • निजी वाहन/टैक्सी: सबसे भरोसेमंद और लचीला विकल्प।
  • बस + लोकल: जिला मुख्यालय/बड़े कस्बों तक बस, फिर साझा जीप/ऑटो। धार्मिक अवसरों (माघ पूर्णिमा मेले) में लोकल वाहन अधिक चलते हैं।

वहाँ पहुँचकर क्या महसूस हुआ

देवगुड़ियों के पास पहुँचते ही एक संतुलित शांति महसूस होती है। पवित्र सरोवर का पानी बिल्कुल साफ — सिक्का फेंकें तो कई फीट नीचे तक चमक देखी जा सकती है। सुबह-सुबह धुंध में ढके साल-बांस के झुरमुट, और दूर पहाड़ियों के पीछे से उगता सूरज — यह सब मिलकर एक आंतरिक स्थिरता देता है।

स्थानीय गोंड/बैगा समुदाय से बातचीत में जाना कि वे पेड़ों, चट्टानों और जलस्रोतों में देवत्व देखते हैं। “देवगुड़ी/मातागुड़ी” सिर्फ़ पूजा स्थल नहीं, बल्कि समुदाय द्वारा संरक्षित पवित्र उपवन हैं — जहाँ बिना आवश्यकता कोई पेड़ नहीं काटा जाता। यह आस्था जंगल को जिंदा रखती है।

लोग और संस्कृति

  • प्रमुख समुदाय: गोंड, बैगा और अन्य वनवासी समूह।
  • भाषा: गोंडी, हिंदी; बुजुर्गों से बात करते समय धैर्य रखें, वे अद्भुत किस्से सुनाते हैं।
  • आचरण: सिर ढककर देवस्थल में प्रवेश, शोर‑शराबा न करें, कचरा न छोड़ें।

कुछ रोचक तथ्य

  • पवित्र उपवन (Sacred Groves) जैसे देवगुड़ियां जैव विविधता के स्वाभाविक आश्रय हैं; आस्था के कारण ये क्षेत्र पीढ़ियों से संरक्षित रहे हैं।
  • माघ पूर्णिमा पर 2–3 दिन का मेला लगता है, आसपास के गाँवों से लोग स्नान‑पूजन के लिए आते हैं — इसी समय लोकनृत्य व संगीत भी सुनने को मिलता है।

यात्रा टिप्स

  • मौसम: अक्टूबर–मार्च सबसे अनुकूल; मानसून में रास्ते फिसलन भरे हो सकते हैं।
  • साथ रखें: पानी, हल्का नाश्ता, चलने योग्य जूते, ऑफ़लाइन मैप, एक स्थानीय गाइड का संपर्क।
  • प्रकृति आचार संहिता: सिर्फ़ पदचिह्न छोड़ें, कुछ न तोड़ें/उखाड़ें, सरोवर/देवस्थल में साबुन/रसायन न डालें।

संदर्भ और आगे पढ़ें

  • Sacred groves and community conservation: “Sacred groves: where faith and biodiversity conservation meet” — The Federal
  • देव/मातागुड़ी संरक्षण की मिसालें (छत्तीसगढ़/बस्तर क्षेत्र रिपोर्टिंग): Janta Se Rishta
  • क्षेत्र की वन-संस्कृति पर वैयक्तिक यात्रा-वृत्तांत और फोटो निबंध: Nva Bihan Blog

नोट: वास्तविक देवस्थल/समुदाय के फोटो प्रकाशित करते समय उनकी अनुमति और गोपनीयता का सम्मान करें।